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Tuesday, July 14, 2015

अपने दिल की दास्तां हमको बयां करनी नहीं

गुज़रते हैं जब भी तेरी,
यादों के गलियारों से
आवाज़ें देती हैं दस्तक,
दिल के किसी दरवाज़े से

रह-रह कर पुकारती हैं,
वक़्त की परछाइयां
पूंछती हैं हाल हमारा,
हमसे फिर तन्हाइयां

बेअसर हैं अब हमपे,
उन आवाज़ों की कसक
जिनसे कभी हुआ करती थी,
दिल की दुनिया में रौनक़

ख़त्म हो चुका है दौर,
बेशुमार ख़ुशफ़हमियों का
अब हमें कोई शौक़ नहीं,
किसी से रूबरू होने का

कुछ पलों का ख़ुशनुमा-सा,
दौर था जो गुज़र गया
ख़्वाबों की हकीक़त के आगे,
वादा-ए-उल्फ़त मुकर गया

फ़र्क़ क्या पड़ता है अब,
हम कैसे हैं कैसे नहीं
अपने दिल की दास्तां,
हमको बयां करनी नहीं

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