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Tuesday, May 10, 2016

ख़यालों का जाल

बुनते रहना ख़यालों का जाल और उलझ जाना खुद ही उनमें।

जानते हो क्यों?

नहीं जानते ??

क्योंकि... तुम्हारी असली जगह उस जाल के बीचों-बीच है।

यकीन नहीं होता मुझ पर !

तो ठीक है, कुछ पल सिर्फ़... और सिर्फ़... अपने ख़यालों के साथ बिताओ। कुछ उनकी सुनो, कुछ अपनी कहो और फिर बताना...