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Monday, September 21, 2015

सुक़ून की मंज़िल

बस यूँ ही गुज़र जाएं कुछ लम्हें,
ख़ुद को ख़ुद ही में तलाशते हुए।
कि मिल जाए सुक़ून की मंज़िल,
इस बेचैन दिल को भटकते हुए।

Sunday, September 20, 2015

बेमानी रस्म

आज फिर मुस्कुरा कर
पूंछ लिया ख़ामोशी ने,
ये कैसा अजब शौक़ है
तुम्हें मुस्कुराने का।

हमने कहा
क्यूँ जानकर
अनजान बनती हो,
हर बार हमसे
क्यूँ तुम यही
सवाल करती हो।

क्या तुम्हें नहीं मालूम
ये दस्तूर है ज़माने का,
वादा है ये रस्मों की
बेमानी रस्म निभाने का!

Tuesday, September 15, 2015

पत्थरदिल

आसान नहीं होता
खुद अपनी
आँखों की नमी छुपाकर
किसी और की
आँखों से बहते हुए
आँसुओं को रोक पाना
ऐसा करने के लिए
पहले खुद, पत्थरदिल
बनना पड़ता है ज़नाब!
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अगली बार किसी पत्थरदिल से मुलाक़ात हो तो उससे नफ़रत करने से पहले सोचियेगा ज़रूर!


Sunday, September 13, 2015

ख़ामोशी

ख़ामोशी बोलती है,
राज़ सारे खोलती है।

हम लाख छुपायें हाल-ए-दिल,
चुपके से बयां कर देती है।

इसको चुप कैसे कर दें भला,
इस पर अपना कोई ज़ोर नहीं।

ये तो उस दिल की जुबां है ज़ालिम,
जिसका अपना कोई ठौर नहीं!

Saturday, September 12, 2015

तुम जानो या मैं जानूँ

इतने जुदा होकर भी कितने मिलते हैं हमारे मिज़ाज,
तुम जानो या मैं जानूँ दोनों की ख़ामोशी का राज़!

Thursday, September 3, 2015

मुस्कुराने का हुनर

दर्द
कितना भी गहरा
क्यों ना सही
हम पर है बेअसर
हमको
आता है ज़नाब
हर दर्द में
मुस्कुराने का हुनर

Wednesday, September 2, 2015

नौसिखिए

रुकिए ज़नाब!
अगली चाल ज़रा,
सम्भल कर चलिएगा।

ये शतरंज की बिसात नहीं,
ज़िन्दगी का खेल है।

इसके दांव-पेंच तो,
अच्छे अच्छों को भी,
उलझा देते हैं अक्सर।

और आप तो,
अभी नौसिखिए हैं!