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Wednesday, September 2, 2015

नौसिखिए

रुकिए ज़नाब!
अगली चाल ज़रा,
सम्भल कर चलिएगा।

ये शतरंज की बिसात नहीं,
ज़िन्दगी का खेल है।

इसके दांव-पेंच तो,
अच्छे अच्छों को भी,
उलझा देते हैं अक्सर।

और आप तो,
अभी नौसिखिए हैं!

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