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Monday, June 29, 2015

परिंदों सा हौसला

परिंदों सा हौसला
ग़र होता सबके पास
ना कोई ग़मगीन होता
ना ही कोई उदास।

ना होती फ़िर बंदिशें
ना कोई ज़ंजीर
ना ज़िरह होती कोई
ना कोई तक़सीर।

रंजो-ग़म का ना ही फ़िर
होता कोई नामों निशां
बस एक ही सबकी हस्ती होती
और कहलाते सब इन्सां।

ना कुछ होता तेरा मेरा
सब कुछ बस हमारा होता
एक छोटा-सा आशियां अपना
फिर आसमान सारा होता।

है तम्मना बस यही
बस इतना-सा है ख़्वाब
ना मुझे कोहिनूर चाहिए
ना ही आफ़ताब।

एक पल को ही सही
मिल जाएं पंख उधार
नाप आऊँ उड़के मैं ये
गगन एक बार।

Saturday, June 27, 2015

तोड़ दूँ सब ज़ंजीरें हदों की

आज सुबह जब आँखें खोलीं,
तो सोचा कुछ  नया करुँ
तोड़ दूँ सब ज़ंजीरें हदों की,
अरमानों को रिहा करुँ।

वो अरमान जो सीने में हैं,
वो जो मेरे अपने हैं
उनको उनका हक़ दिलवा दूँ,
जिसके बिन वो अधूरे हैं।

माना राह नहीं हैं आसां,
हर कदम पर मुश्किल है भारी
लेकिन हर  मुश्किल से लड़ने की,
कर ली है मैंने तैयारी।

लड़ती ही तो आई हूँ मैं,
और लड़ते ही रहना है
जब तक मंज़िल ना मिल जाए,
बस यूं ही चलते रहना है.....

फ़ुर्सत ही नहीं बतियाने की

ना क़लम स्याही कागज़ है,
ना दौर रहा अब पाती का
सब कुछ बदला है वक़्त के साथ,
ना कोई ठौर पुरानी बातों का।

कब कौन कहाँ अब कैसा है,
ये कौन भला अब पूछता है
रिश्ते हैं सब बस नामों के,
नहीं साथ कोई भी देता है।

फ़ुर्सत ही नहीं बतियाने की,
पल दो पल साथ बिताने की
जिसको देखो मशग़ूल है वो,
अपने ख़्वाबों को सजाने में।

जब तक हैं सांसें सीने में,
दिल भी बेख़ौफ़ धड़कता है
ताउम्र ख़ुशी को रहा तरसता,
इक आस लगाए रहता है।

इक आस की मौसम बदलेगा,
और फिर से सावन बरसेगा
फिर गाएगा ये घर आँगन,
और फिर से चहकेगा ये मन।

फिर प्यार की आहट चुपके से,
दस्तक देगी दरवाज़े पर।
फिर साथ बिताएँगे कुछ लम्हें,
होंगे किस्से कुछ कहे अनकहे।