आज सुबह जब आँखें खोलीं,
तो सोचा कुछ नया करुँ
तोड़ दूँ सब ज़ंजीरें हदों की,
अरमानों को रिहा करुँ।
वो अरमान जो सीने में हैं,
वो जो मेरे अपने हैं
उनको उनका हक़ दिलवा दूँ,
जिसके बिन वो अधूरे हैं।
माना राह नहीं हैं आसां,
हर कदम पर मुश्किल है भारी
लेकिन हर मुश्किल से लड़ने की,
कर ली है मैंने तैयारी।
लड़ती ही तो आई हूँ मैं,
और लड़ते ही रहना है
जब तक मंज़िल ना मिल जाए,
बस यूं ही चलते रहना है.....
तो सोचा कुछ नया करुँ
तोड़ दूँ सब ज़ंजीरें हदों की,
अरमानों को रिहा करुँ।
वो अरमान जो सीने में हैं,
वो जो मेरे अपने हैं
उनको उनका हक़ दिलवा दूँ,
जिसके बिन वो अधूरे हैं।
माना राह नहीं हैं आसां,
हर कदम पर मुश्किल है भारी
लेकिन हर मुश्किल से लड़ने की,
कर ली है मैंने तैयारी।
लड़ती ही तो आई हूँ मैं,
और लड़ते ही रहना है
जब तक मंज़िल ना मिल जाए,
बस यूं ही चलते रहना है.....
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