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Friday, May 11, 2018

ख़ामोश कहानियों के जैसे कुछ लोग

कुछ लोग ख़ामोश कहानियों के जैसे होते हैं। एकदम गुमसुम। कहीं खोये हुए से। जैसे किसी पल के किसी हिस्से में कुछ ग़ुम हो गया हो उनका। जिसे ढूँढ़ने की सारी कोशिशें नाक़ाम हो चुकी हों। और हर एक बीतते पल के साथ बढ़ती जाती हो उनकी क़सक। हमेशा के लिए कुछ ख़ो देने की। कभी न दूर होने वाली। वो एक क़सक। जिसने एक पल भी कभी उन्हें चैन से जीने ना दिया हो। और जो उनके जीने की एक आख़िरी वज़ह हो।

उन्हें अक्सर बुरा लग जाता है, जब भी कोई कहता है कोई कहानी। क्योंकि ना जाने क्यों, ना चाहकर भी। दुनिया की हर एक कहानी उन्हें एक पल के उस हिस्से की याद दिलाती है। वो एक हिस्सा जिसमें बंद हैं कुछ ख़ामोश कहानियाँ। जो करती हैं बातें बेहिसाब। वो बातें जिनका ज़िक्र कहीं नहीं होता। वो बातें जो सिर्फ़ उन्हें सुनाई देती हैं।

वो जो रहते हैं गुमसुम, कहीं खोये हुए से। उन लोगों के मन का वहम है ये सब। जो बनाये रखता है एक भ्रमजाल। जिसमें उलझकर अक्सर लोग भटक जाते हैं। और ढूँढ़ते हैं बेसब्र होकर उम्र भर, उस एक पल के बीते हुए हिस्से को। और बन जाते हैं ख़ुद एक हिस्सा उन ख़ामोश कहानियों का। फ़िर उनसे मिलने वाले अक्सर यही कहते हैं -

"कि देखने में तो जीते-जागते इंसानों के जैसे ही मालूम होते हैं, पर फ़िर भी न जाने क्यों... कुछ लोग ख़ामोश कहानियों के जैसे होते हैं।"