बातें... जो कभी शुरू ही नहीं हुईं
बातें... जिनका ख़त्म हो पाना, नामुमकिन है
बातें... जो ना होतीं तो सब कुछ होता ठीक वैसा ही, जैसा सदियों से होता आया है
बातें... जो होतीं तो कितना कुछ बदल जाता, शायद पूरी की पूरी एक ज़िन्दगी
बातें... जिनमें ढ़ेरों अक़्स दिखाई देते हैं उनके, जिनका कहीं कोई वजूद ही नहीं
बातें... जिनकी तह तक पहुँचने की कुलबुलाहट, कर देती है बेचैन वक़्त बेवक़्त
बातें... जिनके सिरे ढूँढ पाना, इस दुनिया का सबसे पेचीदा काम है
बातें... जिन्हें समझ पाना, दिल और दिमाग दोनों के ही बस में नहीं
बातें... जिन्हें करते-करते ख़त्म हो जाए, ये ज़िन्दगी का संज़ीदा खेल
बातें... जिनमें सिमट जाए बरसों की कहानी, महज़ एक छोटे-से पल में
बातें... जिनसे आती हो ख़ुशबू, किसी अधखिले जंगली फूल की
बातें... जिनमें देती हो सुनायी, आहट हवा के मदमस्त झोंकों कीबातें... जिनके बिना हर एक बात अधूरी है, हर कहानी अधूरी
बातें... जिनका ज़िक्र कभी कोई, कहीं भूले से भी नहीं करता
बातें... जिन्हें करते-करते वक़्त कब गुज़र जाए, पता भी ना चले
बातें.......
अरे, अब बस भी कीजिए! ज़्यादा बातें करना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, किसी ने बताया नहीं क्या आपको? अगर इसी तरह बातें करते रहे तो बातें करना ही भूल जाएंगें, ये तक याद नहीं रहेगा कि क्या कहना था और क्या नहीं कहना था। बातें एक जादुई नशे की तरह होती हैं, जो कब हमें अपनी गिरफ़्त में ले लेती हैं पता नहीं चलता। इसलिए कुछ पल ख़ामोश भी रहा कीजिए।
लेकिन हाँ, चौकन्ने रहियेगा! कहीं फ़िर आपकी ख़ामोशी ही आपसे बातें ना करने लग जाए!