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Wednesday, December 2, 2015

सब कहते हैं पागल तुम्हें!

तुम जैसा दीवाना दुनिया में
शायद ही कोई और हो
खोजते रहते हो उसको
हर जगह, हर तरफ़, हर लम्हा।

समझ नहीं आता मुझको
क्या दिखता है, तुम्हें उसमें
ऐसा क्या है उसमें
जो तुम दीवाने हो उसके
वो सिर्फ़ नज़रों का धोख़ा है
या फ़िर कुछ और
आख़िर क्या है उसमें
जो खींचता है, तुम्हें अपनी ओर।

ऐसा क्या है उसमें
जो मुझे नज़र नहीं आता
ऐसा क्या है उसमें
जो मुझसे समझा नहीं जाता
क्या है, जो ढूँढते रहते हो तुम
इन टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों में
क्या है, जो नहीं मिलता तुमको
इन काग़ज़ की तस्वीरों में।

बस एक बार बतला दो मुझको
अपने दीवानेपन की वज़ह
इन बरसों पुरानी तस्वीरों को
हर पल निहारने की वज़ह।

तुमको तो मालूम नहीं
एक नया
अलग-सा नाम
दे दिया है, ज़माने ने तुम्हें
तुम्हारी हर बात को कहते हैं
पागलपन की निशानी
और
सब कहते हैं पागल तुम्हें!

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