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Saturday, December 12, 2015

क्या रक्खा है बातों में !

क्या रक्खा है बातों में,
ले कलम तू अपने हाथों में।
लिख दे जो भी मन में आए,
लिख दे जो भी मन को भाए।

वो जो दिल तुझसे लिखवाए,
वो जो तू कभी ना कह पाए।
वो जो तुझमें रहता है कहीं,
वो जो तुझमें सिमटा है कहीं।
वो जो तेरा ही किस्सा है,
वो जो तेरा ही हिस्सा है।
वो जो इक सपना सुहाना है,
वो जो बस इक अफ़साना है।
वो जो तेरा ना मेरा है,
वो जो बस भरम का फेरा है।
वो जो गुमसुम गुपचाप सा है,
वो जो अंजाना ख़्वाब सा है।
वो जो सच होकर झूठ लगे,
वो जो झूठा भी सच्चा लगे।

लिख दे जो भी मन को भाए,
लिख दे जो भी मन में आए।
ले कलम तू अपने हाथों में,
क्या रक्खा है बातों में !

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* रक्खा = रखा

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