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Saturday, December 19, 2015

सर्द रातों की तपन

क्या महसूस करके देखी है कभी?
तुमने वो सर्द रातों की तपन।
जिसकी तपिश में हो जाते हैं ख़ाक,
ना जाने कितने ही ठिठुरते बदन।

Saturday, December 12, 2015

इश्क़

इश्क़ वही जो सर चढ़ जाए, ख़ुद नाचे और तुम्हें नचाए!




क्या रक्खा है बातों में !

क्या रक्खा है बातों में,
ले कलम तू अपने हाथों में।
लिख दे जो भी मन में आए,
लिख दे जो भी मन को भाए।

वो जो दिल तुझसे लिखवाए,
वो जो तू कभी ना कह पाए।
वो जो तुझमें रहता है कहीं,
वो जो तुझमें सिमटा है कहीं।
वो जो तेरा ही किस्सा है,
वो जो तेरा ही हिस्सा है।
वो जो इक सपना सुहाना है,
वो जो बस इक अफ़साना है।
वो जो तेरा ना मेरा है,
वो जो बस भरम का फेरा है।
वो जो गुमसुम गुपचाप सा है,
वो जो अंजाना ख़्वाब सा है।
वो जो सच होकर झूठ लगे,
वो जो झूठा भी सच्चा लगे।

लिख दे जो भी मन को भाए,
लिख दे जो भी मन में आए।
ले कलम तू अपने हाथों में,
क्या रक्खा है बातों में !

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* रक्खा = रखा

Wednesday, December 2, 2015

सब कहते हैं पागल तुम्हें!

तुम जैसा दीवाना दुनिया में
शायद ही कोई और हो
खोजते रहते हो उसको
हर जगह, हर तरफ़, हर लम्हा।

समझ नहीं आता मुझको
क्या दिखता है, तुम्हें उसमें
ऐसा क्या है उसमें
जो तुम दीवाने हो उसके
वो सिर्फ़ नज़रों का धोख़ा है
या फ़िर कुछ और
आख़िर क्या है उसमें
जो खींचता है, तुम्हें अपनी ओर।

ऐसा क्या है उसमें
जो मुझे नज़र नहीं आता
ऐसा क्या है उसमें
जो मुझसे समझा नहीं जाता
क्या है, जो ढूँढते रहते हो तुम
इन टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों में
क्या है, जो नहीं मिलता तुमको
इन काग़ज़ की तस्वीरों में।

बस एक बार बतला दो मुझको
अपने दीवानेपन की वज़ह
इन बरसों पुरानी तस्वीरों को
हर पल निहारने की वज़ह।

तुमको तो मालूम नहीं
एक नया
अलग-सा नाम
दे दिया है, ज़माने ने तुम्हें
तुम्हारी हर बात को कहते हैं
पागलपन की निशानी
और
सब कहते हैं पागल तुम्हें!