वो जो हसीं ख़्वाब है ना,
जो रहता है, तुम्हारी आँख के एक कोने में छुपकर।
उसे अक्सर मैंने ये कहते सुना है,
चाहत, और चाहत, कितनी भी चाहत कर लो तुम।
मुझे हक़ीक़त में तब्दील कर पाना,
अब तुम्हारे तो क्या, किसी के भी बस की बात नहीं।
हक़ीक़त की धुंधली दुनिया का हिस्सा बन जाने से,
कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत है, ख़्वाब बनकर तुम्हारी आँखों में रहना।
और सौ झूठ बोलने से बेहतर है,
एक ही बार में ये कह देना, कि अब आदत-सी हो गई है तुम्हारी।
और इसीलिए तुम्हारी आँखों के सिवा,
अब और कहीं भी रह पाना, मेरे लिए मुमकिन नहीं।