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Sunday, October 29, 2017

Do you miss me?

- Do you miss me?

~ Should I?

- Hmm... It's not necessary.

~ That's good... then why did you ask?

- Just wanted to know.

~ Oh really!?

- Do you miss me?

~ No, never.

- How is it possible?

~ You just said that it's not necessary.

- Yeah... I said it... but...

~ But... but what?

- But....

~ I don't have that much time. Speak up!

- I want to listen to your answer.

~ You didn't listen to me! I just said, NO.

- That's not true.

~ Ok... then let me know the truth.

- You miss me!

~ You are wrong as usual. I don't miss you. 

- No, you can't say it.

~ I can do anything.

- You are a liar.

~ No, I'm not.

- I miss you a lot.

~ I know that.

- Still, you don't miss me..!

~ Coz I don't need to.

- Why?

~ You know that.

- No, I don't know. Please don't go anywhere.

~ I'm not going anywhere.

- I can't lose you.

~ Don't worry. You won't.

- How can you behave so rudely with me?

~ You deserve it, my idiot!

- I deserve you... I deserve you.

~ I'll be with you forever.

- I'll miss you.

~ I know.

............. And she closed her eyes forever.


Friday, October 27, 2017

रेनबो सी ज़िन्दगी

वो कहते हैं ना
गिने-चुने समझदार लोग
कि कुछ भी हो जाये ज़िन्दगी कभी नहीं रूकती

यही बात है इसकी निराली
है ये अपने मन की रानी
चलती रहती है ये बिना किसी रोक-टोक

कभी हँसाती, कभी रूलाती
और कभी चुपके से छेड़कर
दूर कहीं जाकर किसी कोने में छुप जाती

और वहाँ से चोरी-चोरी
फिर देखती तमाशा
हँसती खिलखिलाकर और वहीं से चिढ़ाती भी

झूमती, गाती, मुस्कुराती
मत पूछो कितना सताती
आते-जाते हर पल को ये एक नए रंग से सजाती

थोड़ी अकड़ू, थोड़ी ज़िद्दी
और थोड़ी-सी सिरफ़िरी
मेरी है ये, मुझ सी है ये..... "रेनबो सी ज़िन्दगी"

Friday, August 25, 2017

सचमुच वाला झूठ

अब हर बार की तरह ये मत कह देना कि मैंने अभी जो कुछ कहा वो कोरा झूठ है। तुम्हें मालूम है ना, मुझे अपनी कही गई किसी भी बात को झूठ कहलवाना बिल्कुल पसंद नहीं! और ख़ासतौर से तुम्हारे मुँह से तो ऐसी बातें सच्ची में.... बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती। वैसे मुझे कुछ बताना है, तुम्हें। सुन रहे हो ना? अच्छा सुनो! ये जो कुछ मैंने अभी कहा... जो कुछ मतलब जो भी कुछ.... वो सब सच्ची में झूठ है।

एकदम झूठ, वो भी सचमुच वाला!!

Monday, July 10, 2017

एक हसीं ख़्वाब की हसरत

वो जो हसीं ख़्वाब है ना,
जो रहता है, तुम्हारी आँख के एक कोने में छुपकर।

उसे अक्सर मैंने ये कहते सुना है,
चाहत, और चाहत, कितनी भी चाहत कर लो तुम।

मुझे हक़ीक़त में तब्दील कर पाना,
अब तुम्हारे तो क्या, किसी के भी बस की बात नहीं।

हक़ीक़त की धुंधली दुनिया का हिस्सा बन जाने से,
कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत है, ख़्वाब बनकर तुम्हारी आँखों में रहना।

और सौ झूठ बोलने से बेहतर है,
एक ही बार में ये कह देना, कि अब आदत-सी हो गई है तुम्हारी।

और इसीलिए तुम्हारी आँखों के सिवा,
अब और कहीं भी रह पाना, मेरे लिए मुमकिन नहीं।

Sunday, July 9, 2017

फ़ासला

फ़ासला बस दो कदमों का था
एक-एक कदम बढ़ाना था
पर सवाल तो आख़िर ये था कि
पहला कदम बढ़ाता कौन!


Thursday, May 11, 2017

थोड़ा-सा अदब बाकी है अभी!

बेवज़ह मुस्कुराने का हुनर आपमें हो शायद
पर बदकिस्मती कहिये या बदमिजाज़ी
हमें ऐसे शौक़ पालने का कोई शौक़ नहीं
अब आप कहेंगे इतनी बेरुख़ी अच्छी नहीं

तो ज़रा गौर फ़रमाइये!

अच्छी-बुरी का हिसाब लगाना
हमारी तो छोड़िये, हमारी फ़ितरत की भी फ़ितरत नहीं
कितनी भी बेरूख़ी क्यूँ न सही
पर ये हमारी बदमिजाज़ी, इतना तो यक़ीं दिलाती है
कि कुछ हो, या न हो सब कुछ होकर भी
बेअदब-सी इस ज़िन्दगी में थोड़ा-सा अदब बाकी है अभी!

Tuesday, March 21, 2017

नीली पतंग

Story Mirror नामक वेबसाइट पर प्रकाशित हुई मेरी इस कहानी को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - "नीली पतंग" on StoryMirror

Monday, March 20, 2017

कुछ चीज़ें और एक वज़ह

कभी-कभी कुछ चीज़ें बहुत पीछे छूट जाती हैं, अक्सर उस राह पर.... जहाँ से एक बार गुज़रने के बाद फिर कभी वहाँ जाना ही नहीं हुआ। अक्सर ऐसी चीज़ों का कोई मोल नहीं होता, क्योंकि अगर ऐसा होता तो.... उन्हें सहेज कर रखा जाता, ना कि इस तरह कहीं किसी भी राह पर यूँ ही छोड़ दिया जाता। लेकिन क्या असल में ऐसा होता है? क्या वाकई कुछ चीज़ें भूल से कहीं छूट जाती हैं? या फिर हम उन चीज़ों को वहाँ जान बूझकर छोड़ देते हैं, ताकि कोई तो एक वज़ह रहे उस राह पर वापस जाने की!

Friday, March 17, 2017

जादूगर का जादू

कुछ पलों के लिए ही सही
ठहर जाता है वक़्त भी
जब हैरानगी से भरी निगाहें
ढूँढ़ती हैं पता
एक अदद जादूगर का
जिसे आता हो ऐसा जादू
जिसका कोई तोड़ ना हो
पूरी दुनिया छान ली जाए तो
उससे ज़्यादा जादुई, कुछ और ना हो
उस जादू का जादू देखने को
जाने क्यों जिये जाते हैं लोग
कुछ और नहीं, बस भरम है ये
क्यों नहीं समझ पाते हैं लोग

समझेंगे आख़िर कैसे भला
नादां हैं, नहीं कुछ जानते हैं
बात बड़ी सीधी-सी है
चलिए हम ही बतलाते हैं

दरअसल कुछ भी यहाँ असल नहीं 
ना जादूगर, ना उसकी छड़ी
बस भरम का मायाजाल ये है
सब कुछ नज़रों का धोखा है
जिस जादूगर को ढूँढते हैं
सब जिसकी बातें करते हैं
वो तो बैठा है दूर कहीं
जिसमें सब खोये-खोये हैं
ये तो बस उसका जादू है
जिसके आगे ना चले किसी की
जिसके आगे सब है बेअसर
ये खेल है उस जादूगर का
उसके जादू का है ये असर!