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Sunday, November 29, 2015

हम तुम

हम अदरक वाली चाय बलमवा तुम कैफ़े की कॉफ़ी

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हम तो ठहरे भीम पलासी और तुम राग भैरवी

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हम सर्द सुबह हैं पूस की और तुम जेठ की तपती दुपहरी

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हम तो निंबोली नीम की और तुम शहद की चाशनी  (15/12/15 - 01:40 AM)

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हम ठहरे रेत किनारे की और तुम सागर के मोती  (21/01/16 - 03:00 PM)

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ये हम तुम की मीठी-सी तकरार है जो हमेशा चलती रहती है..... और अभी भी जारी है..... 

Thursday, November 26, 2015

नसीहतें

नसीहतें कितनी भी अच्छी क्यों ना सही, उन्हें मानता कौन है?
यहाँ तो सब अपनी-अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं मेरी तरह !

Thursday, November 19, 2015

पसरा है सन्नाटा दूर तलक

कहाँ हो तुम?

कैसे हो?

क्या तुम्हें भी सुनाई नहीं देती कोई आवाज़ मेरी तरह? क्या तुम भी तब्दील हो गए हो किसी दरख़्त की सूखी टहनियों में..... या फिर बाकी हैं अभी कुछ और दिन, तुम्हारी सज़ायाफ्ता ज़िंदगी के?

रह-रह कर, ये सवाल मेरे ज़ेहन में आते हैं। बढ़ती ही जाती है बेचैनी दिल की, हर बार बढ़ती इस सवालों की फेहरिस्त के साथ। मगर अफ़सोस तो इस बात का है कि लाख जतन करने के बाद भी पलटकर कभी इन सवालों के ज़वाब नहीं आते।

क्यों नहीं मिलते मुझे इन सवालों के ज़वाब? तुम्हें पता है क्या, इसकी कोई वज़ह?

रहने दो, क्या फ़र्क पड़ता है तुम्हें कुछ पता होने या ना होने से। तुम तो यूँ ही बैठे रहना इस फ़ोटो फ्रेम में और इस शीशे के पीछे से मुस्कुराते रहना। मत बताओ, बैठे रहो.....  और हाँ, ऐसे ही बैठे रहना बुत बनके। देखती हूँ मैं भी, कब तक ख़ामोश रहोगे तुम और मुझे चिढ़ाओगे बार-बार। देखना एक दिन तुम भी तड़पोगे और ढूंढोगे इसी तरह मुझे हर तरफ।

और कहोगे बस एक ही बात।

कोशिश तो बहुत की सुनने की, लेकिन कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती। हर तरफ तुम्हारी यादें हैं और पसरा है सन्नाटा दूर तलक।

Wednesday, November 18, 2015

शायद हमारी तरह

हर चीज़,
एक-सी नहीं होती हमेशा
मेरी तरह और तुम्हारी तरह
या फिर शायद हमारी तरह!

तुम और मैं
या फिर कहूँ कि हम दोनों
कभी एक से नहीं रहते
बिल्कुल वैसे ही
जैसे दिन बदल जाता है
रात के घने अंधेरे में
और रात बदल जाती है
सुबह के उजले सवेरे में
बदल जाते हैं हम भी यूँ ही
कभी जाने-पहचाने अपनों में
और कभी अजनबी चेहरों में।

इसे वक़्त का कारनामा कहिए
या फिर किस्मत का खेल
कोई ना जाने कब मिल जाए
कैसे, कहाँ और किससे मेल
और ना जाने कब चल जाए
फिर किस्मत की जादुई छड़ी
और ले ले वापस
इक झटके में सब कुछ
और देखे तमाशा खड़ी-खड़ी
तब धीरे से कहो तुम खुद से
किस्मत कभी एक-सी नहीं रहती
क्योंकि इस दुनिया में तो
कभी कोई चीज़ एक-सी नहीं रहती।

सब बदल जाता है यहाँ
पल-पल गुज़रते वक़्त के साथ
बिल्कुल मेरी और तुम्हारी तरह
या फिर, शायद हमारी तरह!

Friday, November 6, 2015

इतनी सी पहचान

यूँ तो कुछ ख़ास नहीं उसमें,
फ़िर भी वो दिल के क़रीब है मेरे।
क्या इतनी सी पहचान काफ़ी नहीं?
उसको अपना कहने के लिए....!