कहाँ हो तुम?
कैसे हो?
क्या तुम्हें भी सुनाई नहीं देती कोई आवाज़ मेरी तरह? क्या तुम भी तब्दील हो गए हो किसी दरख़्त की सूखी टहनियों में..... या फिर बाकी हैं अभी कुछ और दिन, तुम्हारी सज़ायाफ्ता ज़िंदगी के?
रह-रह कर, ये सवाल मेरे ज़ेहन में आते हैं। बढ़ती ही जाती है बेचैनी दिल की, हर बार बढ़ती इस सवालों की फेहरिस्त के साथ। मगर अफ़सोस तो इस बात का है कि लाख जतन करने के बाद भी पलटकर कभी इन सवालों के ज़वाब नहीं आते।
क्यों नहीं मिलते मुझे इन सवालों के ज़वाब? तुम्हें पता है क्या, इसकी कोई वज़ह?
रहने दो, क्या फ़र्क पड़ता है तुम्हें कुछ पता होने या ना होने से। तुम तो यूँ ही बैठे रहना इस फ़ोटो फ्रेम में और इस शीशे के पीछे से मुस्कुराते रहना। मत बताओ, बैठे रहो..... और हाँ, ऐसे ही बैठे रहना बुत बनके। देखती हूँ मैं भी, कब तक ख़ामोश रहोगे तुम और मुझे चिढ़ाओगे बार-बार। देखना एक दिन तुम भी तड़पोगे और ढूंढोगे इसी तरह मुझे हर तरफ।
और कहोगे बस एक ही बात।
कोशिश तो बहुत की सुनने की, लेकिन कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती। हर तरफ तुम्हारी यादें हैं और पसरा है सन्नाटा दूर तलक।
कैसे हो?
क्या तुम्हें भी सुनाई नहीं देती कोई आवाज़ मेरी तरह? क्या तुम भी तब्दील हो गए हो किसी दरख़्त की सूखी टहनियों में..... या फिर बाकी हैं अभी कुछ और दिन, तुम्हारी सज़ायाफ्ता ज़िंदगी के?
रह-रह कर, ये सवाल मेरे ज़ेहन में आते हैं। बढ़ती ही जाती है बेचैनी दिल की, हर बार बढ़ती इस सवालों की फेहरिस्त के साथ। मगर अफ़सोस तो इस बात का है कि लाख जतन करने के बाद भी पलटकर कभी इन सवालों के ज़वाब नहीं आते।
क्यों नहीं मिलते मुझे इन सवालों के ज़वाब? तुम्हें पता है क्या, इसकी कोई वज़ह?
रहने दो, क्या फ़र्क पड़ता है तुम्हें कुछ पता होने या ना होने से। तुम तो यूँ ही बैठे रहना इस फ़ोटो फ्रेम में और इस शीशे के पीछे से मुस्कुराते रहना। मत बताओ, बैठे रहो..... और हाँ, ऐसे ही बैठे रहना बुत बनके। देखती हूँ मैं भी, कब तक ख़ामोश रहोगे तुम और मुझे चिढ़ाओगे बार-बार। देखना एक दिन तुम भी तड़पोगे और ढूंढोगे इसी तरह मुझे हर तरफ।
और कहोगे बस एक ही बात।
कोशिश तो बहुत की सुनने की, लेकिन कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती। हर तरफ तुम्हारी यादें हैं और पसरा है सन्नाटा दूर तलक।
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