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Wednesday, November 18, 2015

शायद हमारी तरह

हर चीज़,
एक-सी नहीं होती हमेशा
मेरी तरह और तुम्हारी तरह
या फिर शायद हमारी तरह!

तुम और मैं
या फिर कहूँ कि हम दोनों
कभी एक से नहीं रहते
बिल्कुल वैसे ही
जैसे दिन बदल जाता है
रात के घने अंधेरे में
और रात बदल जाती है
सुबह के उजले सवेरे में
बदल जाते हैं हम भी यूँ ही
कभी जाने-पहचाने अपनों में
और कभी अजनबी चेहरों में।

इसे वक़्त का कारनामा कहिए
या फिर किस्मत का खेल
कोई ना जाने कब मिल जाए
कैसे, कहाँ और किससे मेल
और ना जाने कब चल जाए
फिर किस्मत की जादुई छड़ी
और ले ले वापस
इक झटके में सब कुछ
और देखे तमाशा खड़ी-खड़ी
तब धीरे से कहो तुम खुद से
किस्मत कभी एक-सी नहीं रहती
क्योंकि इस दुनिया में तो
कभी कोई चीज़ एक-सी नहीं रहती।

सब बदल जाता है यहाँ
पल-पल गुज़रते वक़्त के साथ
बिल्कुल मेरी और तुम्हारी तरह
या फिर, शायद हमारी तरह!

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