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Monday, June 29, 2015

परिंदों सा हौसला

परिंदों सा हौसला
ग़र होता सबके पास
ना कोई ग़मगीन होता
ना ही कोई उदास।

ना होती फ़िर बंदिशें
ना कोई ज़ंजीर
ना ज़िरह होती कोई
ना कोई तक़सीर।

रंजो-ग़म का ना ही फ़िर
होता कोई नामों निशां
बस एक ही सबकी हस्ती होती
और कहलाते सब इन्सां।

ना कुछ होता तेरा मेरा
सब कुछ बस हमारा होता
एक छोटा-सा आशियां अपना
फिर आसमान सारा होता।

है तम्मना बस यही
बस इतना-सा है ख़्वाब
ना मुझे कोहिनूर चाहिए
ना ही आफ़ताब।

एक पल को ही सही
मिल जाएं पंख उधार
नाप आऊँ उड़के मैं ये
गगन एक बार।

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