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Monday, September 21, 2015

सुक़ून की मंज़िल

बस यूँ ही गुज़र जाएं कुछ लम्हें,
ख़ुद को ख़ुद ही में तलाशते हुए।
कि मिल जाए सुक़ून की मंज़िल,
इस बेचैन दिल को भटकते हुए।

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