बुनते रहना ख़यालों का जाल और उलझ जाना खुद ही उनमें।
जानते हो क्यों?
नहीं जानते ??
क्योंकि... तुम्हारी असली जगह उस जाल के बीचों-बीच है।
यकीन नहीं होता मुझ पर !
तो ठीक है, कुछ पल सिर्फ़... और सिर्फ़... अपने ख़यालों के साथ बिताओ। कुछ उनकी सुनो, कुछ अपनी कहो और फिर बताना...
जानते हो क्यों?
नहीं जानते ??
क्योंकि... तुम्हारी असली जगह उस जाल के बीचों-बीच है।
यकीन नहीं होता मुझ पर !
तो ठीक है, कुछ पल सिर्फ़... और सिर्फ़... अपने ख़यालों के साथ बिताओ। कुछ उनकी सुनो, कुछ अपनी कहो और फिर बताना...
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